Sunday 19 August 2012

शरीफ आदमी


अमृत लाल मन्नन

मनु दौड़ती हुई घर में दाखिल हुई और आवाज़ दी, चाची जी, बाहर डाकिया खड़ा है। आपका एक और पासपोर्ट आया है।
हरीश की पत्नी पति से पूछने लगी, बतओ जी, डाकिए को कितने पैसे दूँ, छोटू का पासपोर्ट आया होगा।
हरीश बोला, पचास रुपये दे दो, अभी परसों ही तो पासपोर्ट के पचास दिए हैं।
दो मिनट बाद ही पत्नी वापस आ गई। अपने दिल्ली वाले पोते का पासपोर्ट उसे पकड़ाते हुए बोली, यह लो जी आपके पचास रुपये, नहीं लिए उसने।
सतीश एकदम भड़क उठा, नहीं लिए साले ने! और क्या भैंस खोल कर दे दें। ड्यूटी करते हैं साले, हमारे सिर पर एहसान नहीं करते।
उसकी पत्नी बोली, पहले पूरी बात तो सुन लो जी, बस हर वक्त लड़ने को तैयार रहते हो। डाकिया कहता–उसे हमारे बेटे और पोते के नामों का पता नहीं था। एड्रेस अधूरा होने के कारण वह दो दिन इधर-उधर पूछता रहा। आज पता चला कि यह पासपोर्ट हमारे पोते का है।
अच्छा तो फिर सौ रुपये दे-दे उसकी खज्जल-खुआरी के।सतीश बोला।
शरीफ आदमी है जी, बधाई नहीं ली उसने। कहता, ‘परसों भी आपने जबर्दस्ती दे दिए थे पचास रुपये। डाक बाँटना तो हमारा काम है, किसी पर एहसान नहीं।
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