एम. अनवार अंजुम
ज़ैलदार हरनाम सिंह की पत्नी ने तीसरी बार भी लड़की को जन्म दिया तो उसका दिल ही टूट गया। दुखी ज़ैलदार बोझिल कदमों से गुरुद्वारे पहुँचा। वह अरदास करने लगा, “हे वाहेगुरु! मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो हर बार मुझे लड़की ही देते हो। इन लड़कियों से तो मैं बे-औलाद ही भला था। मुझे एक बेटा चाहिए, मेरा वारिस और खानदान चलाने वाला।”
हरनाम सिंह अपनी अरदास में व्यस्त था। तभी गाँव का सरपंच साधू सिंह वहाँ आया। साधू सिंह के पास करोड़ों की जमीन-जायदाद थी। वह अरदास कर रहा था, “हे वाहेगुरु! तुम्हारे घर किस चीज की कमी है। मुझे भी एक औलाद दे दे। मैं तो तुमसे लड़का भी नहीं मांगता, मुझे तो चाहे लड़की ही दे दे। मैं भी ‘पिता’ कहलाने का आनंद ले सकूँ। मुझ पर कृपा कर वाहेगुरु, कहीं मैं दुनिया से बेऔलाद ही न चला जाऊँ।”
सरपंच साधू सिंह की यह प्रार्थना सुन कर ज़ैलदार हरनाम सिंह भगवान का शुक्र मनाता हुआ अपने घर की ओर चल दिया। घर पहुँच कर उसने अपनी नई जन्मी बेटी को गले से लगा लिया।
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