जसबीर बेदर्द लंगेरी
पति की मौत के भोग के समय गाँव के सभी लोगों ने जसप्रीत के सिर पर हमदर्दी भरा हाथ रखा और इसे ‘भगवान की मर्जी’ कह ढाढ़स बँधाया। उसे सभी लोग अपने बाजुओं जैसे लगे। उनके साहस से ही उसने अपनी बिखरी हुई ज़िंदगी का छोर फिर से पकड़ लिया।
कुछ समय बाद जसप्रीत को पति की जगह दफ्तर में क्लर्क की नौकरी मिल गई। संयोग से दफ्तर की अधीक्षक भी एक सुलझी हुई औरत थी।
“जसप्रीत, ज़िंदगी में कई घटनाएँ घटती हैं। कुछ तो जल्दी भूल जाती हैं, कुछ देर से…और कुछ बहुत भुलाने से भी नहीं भूलतीं। पर इसके बावजूद, ज़िंदगी और रंगों का रिश्ता बहुत गहरा होता है। रंगों के बिना ज़िंदगी का कोई अर्थ नहीं। मेरा भाव यह है कि तूने ज़िंदगी को जो बेरंग-सा बना रखा है, वह ठीक नहीं। ’गर तू बुरा न माने तो ये सफेद-से कपड़े पहन कर मत आया कर। अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है!” एक दिन लंच के समय अधीक्षक ने जसबीर को प्यार से कहा
“बुरा क्या मनाना है, मैडम जी! दिल तो मेरा भी वही कहता है, जो आपने कहा। पर मैं डरती हूँ कि गाँव वाले क्या कहेंगे। विधवा होना औरत के लिए श्राप है।” जसप्रीत की आँखें भर आईं।
“लोगों की परवाह नहीं करते। लोगों की खातिर अपनी बची हुई खुशियों की बलि मत दे। सम्मान से जीना सीख।” अधीक्षक ने जसप्रीत के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
फिर वे कोसी-कोसी धूप में से उठकर अपनी-अपनी सीटों पर चली गईं।
जसप्रीत देर रात तक सोचती रही। सुबह बच्चों को स्कूल भेजने के बाद वह विशेष रूप से तैयार हुई। उसने संदूक में दबा पड़ा पति का लाया हुआ लाल बूटियों वाला सूट पहना। गली में लोगों की तिरछी निगाहों की परवाह न करते हुए, वह ड्यूटी पर जाने के लिए बस-स्टैंड की ओर चल दी।
-0-
5 comments:
कथा बहुत अच्छी लगी!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
अधीक्षक ने जसप्रीत को साहस दिया और उसके जीवन में कुछ रंग फिर से जी उठे ...
प्रेरक !
ज़िन्दगी में सदैव नीरसता का परित्याग करते रहना चाहिए ..अच्छी कथा ..
kalamdaan.blogspot.com
जीवन के डिब्बेमेंका एक काला रंग ....जिसे हमनेही बनवाया....
जिवनके अनेक रंगोमेसे एक रंग जिसे हमने ही रंग दिया.........
Post a Comment