Tuesday, 7 June 2011

सुलह


भीम सिंह गरचा
मंगे!सरपंच ने मंगे लोहार की पूरी बात सुनकर तुरंत कहा, तू कह रहा है कि आज सुबह तेरी बड़ी लड़की गुरुद्वारे जा रही थी तो रास्ते में लंबड़दारों के प्रीते ने उससे छेड़खानी की। बात तो बहुत बुरी है! पर साथ ही यह बात भी है कि तू अपनी कमीज ऊपर करेगा तो तेरा ही पेट नंगा होगा। लड़की की बदनामी हो जाएगी।
कुछ देर रुक कर सरपंच फिर बोला, तू आप टी.बी. का मरीज है। चार बेटियों के बाद ईश्वर ने तुझे बेटा दिया है। मैंने तो सुना है कि वह भी बेचारा ठीक नहीं रहता। तू मेरी बात मान। तू अपनी लड़की वाली बात छिपाए रख। मैं तुझे लंबडदार से पचास किलो गेहूँ और सौ रुपये नगद…
सरपंच की बात सुन मंगे लोहार का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। वह ऊँची आवाज़ में ज़मींदारों को गालियां देने लगा। सरपंच के बेटों ने उसे धक्के मार कर बाहर निकाल दिया।
मंगा लोहार जब घर पहुँचा तो उसकी पत्नी रामरक्खी रोनी-सी आवाज़ में बोली, मैंने कहा जी, दोधी ने आज दूध नहीं दिया। वह पहले पैसे माँगता है। आटा भी खत्म हुआ पड़ा है। अपने घर रोटी नहीं पकी। आज सुबह से किसी ने चाय नहीं पी। और ऊपर से बेटे को ज़ोर का बुखार…।
मंगे ने जल्दी से बेटे के माथे पर हाथ रख कर देखा। सचमुच ही वह भट्ठी की तरह तप रहा था। फिर उसकी नज़र बेटियों के पीले पड़ गए चेहरों पर ठहर गई। उसने एक गहरी साँस ली और लरजती आवाज़ में कहा, रामरक्खी! मैं गुस्से में आकर सरपंच को बहुत बुरा-भला कह आया हूँ। तू जाकर उसके पाँव पकड़ ले। वह तुझे लंबड़दारों के घर से पचास किलो गेहूँ और सौ रुपये नगद दिलवा देगा।
फिर वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा।
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2 comments:

vandana gupta said...

इंसानी मनबूरी का बेहतरीन चित्रण्।

Er. सत्यम शिवम said...

आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके पोस्ट की है हलचल...जानिये आपका कौन सा पुराना या नया पोस्ट है यहाँ...........

"नयी पुरानी हलचल"