सतिन्द्र कौर
“क्या हुआ?”
“एक्सीडेंट! ट्रक वाले ने एक आदमी को नीचे दे दिया।”
वह भीड़ में आगे बढ़ा। खून से लथपथ लाश उससे देखी न गई।
“चावल तो बासमती लगते है?” उसके कान में आवाज पड़ी।
“बढ़िया बासमती है। देख न कितनी अच्छी महक आ रही है।”
“ओ हो! कितना ज्यादा नुकसान हो गया। पाँच किलो तो होंगे ही?”
“हाँ। थैला भरा था।”
उसने देखा, उसके पास ही खड़े मैली बनियान पहने दो आदमी लाश के पास बिखरे पड़े चावलों को बड़ी हसरत से देख रहे थे।
-0-
6 comments:
bahut badhiyaa!!
उफ़!!!!!!!!!!
बदलते जीवन मूल्यों की सटीक अभिव्यक्ति.आभार.
सादर,
डोरोथी.
nice story..
keep writing..
Please Visit My Blog..
Lyrics Mantra
सचमुच कठिन है जीवन ,अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए...
*काव्य- कल्पना*:- दर्पण से परिचय
*गद्य-सर्जना*:-जीवन की परिभाषा…..( आत्मदर्शन)
Post a Comment