Friday, 31 December 2010
स्वागतम्
Monday, 27 December 2010
बासमती की महक
Wednesday, 22 December 2010
वर्दी
Friday, 10 December 2010
एक उज्जवल लड़की
श्याम सुन्दर अग्रवाल
रंजना, उसकी प्रेयसी, उसकी मंगेतर दो दिन बाद आई थी। आते ही वह कुर्सी पर सिर झुका कर बैठ गई। इस तरह चुप-चाप बैठना उसके स्वभाव के विपरीत था।
“क्या बात है मेरी सरकार! कोई नाराजगी है?” कहते हुए गौतम ने थोड़ा झुक कर उसका चेहरा देखा तो आश्चर्यचकित रह गया। ऐसा बुझा हुआ और सूजी आँखों वाला चेहरा तो रंजना के सुंदर बदन पर पहले कभी नहीं देखा था। लगता था जैसे वह बहुत रोती रही हो।
“ये क्या सूरत बनाई है? कुछ तो बोलो?” उसने रंजना की ठोड़ी को छुआ तो वह सिसक पड़ी।
“मैं अब तुम्हारे काबिल नहीं रही!” वह रोती हुई बोली।
गौतम एक बार तो सहम गया। उसे कुछ समझ नहीं आया। थोड़ा सहज होने पर उसने पूछा, “क्या बात है रंजना? क्या हो गया?”
“मैं लुट गई…एक दरिंदे रिश्तेदार ने ही लूट लिया…।” रंजना फूट-फूट कर रो पड़ी, “अब मैं पवित्र नहीं रही।”
एक क्षण के लिए गौतम स्तब्ध रह गया। क्या कहे? क्या करे? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। रंजना का सिर सहलाता हुआ, वह उसके आँसू पोंछता रहा। रोना कम हुआ तो उसने पूछा, “क्या उस वहशी दरिंदे ने तुम्हारा मन भी लूट लिया?”
“मैं तो थूकती भी नहीं उस कुत्ते पर…!” सुबकती हुई रंजना क्रोध में उछल पड़ी। थोड़ी शांत हुई तो बोली, “मेरा मन तो तुम्हारे सिवा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकता।”
गौतम रंजना की कुर्सी के पीछे खड़ा हो गया। उसने रंजना के चेहरे को अपने हाथों में ले लिया। झुक कर रंजना के बालों को चूमते हुए वह बोला, “पवित्रता का संबंध तन से नहीं, मन से है रंजना। जब मेरी जान का मन इतना पवित्र है तो उसका सब कुछ पवित्र है।”
रंजना ने चेहरा ऊपर उठा कर गौतम की आँखों में देखा। वह कितनी ही देर तक उसकी प्यार भरी आँखों में झाँकती रही। फिर वह कुर्सी से उठी और उसकी बाँहों में समा गई।
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Thursday, 2 December 2010
रिश्तों का अंतर
हरभजन खेमकरनी
अपने एक संबंधी के विवाह समारोह में शामिल होने के लिए वह गाँव के बस-स्टैंड पर बस की प्रतीक्षा कर रहा था। उस के साथ उसकी नवविवाहित पत्नी, जवान साली तथा अविवाहित जवान बहन थीं। बस जैसे ही आकर उनके पास रुकी, वह सीटें रोकने के लिए जल्दी से बस में चढ़ गया। पिछले दरवाजे के पास ही तीन सवारियों वाली खाली सीट पर वह बैठ गया। उस की पत्नी उस के दाहिनी ओर बैठ गई और साली बाईं तरफ । उसकी बहन उनके पास आकर खड़ी हो गई। उसने बस में नज़र दौड़ाई। अगले दरवाजे के पास दो वाली सीट पर अकेला नौजवान बैठा था। खाली सीट की ओर इशारा करते हुए वह अपनी बहन से बोला, “बीरो, तू उस सीट पर जाकर बैठ जा।
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