टेक ढींगरा ‘चँद’
गाँव में साक्षरता आंदोलन बड़े जोर-शोर से चल रहा था। गाँव की पंचायत ने इस संबंधी व्यापक प्रबंध किए हुए थे। गाँव में से एक जुलूस निकाला जा रहा था। जुलूस में नारे लग रहे थे।
“हाली-पाली करे कमाई, साथ-साथ वह करे पढ़ाई।”
“आप पढ़ो, दूजों को पढ़ाओ, अनपढ़ता को जड़ से मिटाओ।”
नारे लगा रहे सरपंच गुरबख्श सिंह का हाथ अचानक ऊपर उठने से रुक गया। उसने देखा कि उसके सीरी का बेटा तख्ती-बस्ता उठाए जा रहा था। उसने तुरंत आवाज लगाई, “ओ गोलू, किधर मुँह उठाए जा रहा है?”
गोलू सहम गया, “मैं…मैं…।”
“यह क्या बकरी की तरह मैं-मैं लगाई है।” सरपंच की आवाज तेज थी।
“मैं…मैं…पढ़ने जा रहा हूँ…।” गोलू सहमा-सा बोला।
“साला पढ़ने का।” सरपंच ने खींचकर एक थप्पड़ गोलू के गाल पर लगाया।
गोलू के तख्ती-बस्ता गिर गए।
“तुझे पता नहीं, पशु धूप में सड़ रहे हैं। उन्हें छाँव में मैं करूँगा? सरपंच गुस्से में बोला, “चल, घर जा कर पशुओं को छाँव में कर और चारा डाल।”
गोलू रोता हुआ तख्ती-बस्ता उठा, घर की ओर भाग लिया।
सरपंच फिर से काफ़िले में जा जुड़ा। वह पहले से भी अधिक जोर से नारे लगाने लगा, “हाली-पाली करे कमाई, साथ-साथ वह करे पढाई।”
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3 comments:
वाह जी बहुत बढ़िया.
बहुत सटीक!
SARPANCH rajnitik jeevan ke prarambh ki paydan hai....abhi use PM tk ka safar ty karna hai..... soch lo kya-kya krega........
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