Sunday, 1 June 2014

रिश्ते की बुनियाद



श्याम सुन्द दीप्ति (डॉ.)

आज किटी पार्टी की बारी रमा की है। उसकी तैयारी में अनिल पूरी भाग-दौड़ कर रहा है। पूरे चाव से जुटा हुआ है, उम्र चाहे तेरह-चौदह साल ही है।
उसका यह ‘अनिल’ नाम पता नहीं उसके माँ-बाप ने रखा था या उसकी इस मालकिन रमा ने।
अनिल रमा के पास लगभग पिछले छः महीने से है। शहर में लग रही फैक्टरी में जब मज़दूरों की ज़रूरत थी तो बहुत से मज़दूर यू.पी., बिहार से आए थे। अनिल अपने पिता के साथ आ गया था। माँ को अनिल के साथ बहुत लगाव था, बड़ा बच्चा होने के कारण। वह उसे नहीं भेजना चाहती थी। घर की मंदी हालत, पाँच बच्चे, और कोई चारा भी नहीं था।
अनिल सारा दिन रमा के काम में हाथ बंटाता। घर से कचहरी तक।
रमा का काम क्या था? कागज-पेपर तस्दीक करने। नौटरी का काम था। रमा ने विवाह के बाद वकालत नहीं की थी। यह तो दोनों बच्चों के सैट होने के बाद, वक्त काटने के लिए मेज-कुर्सी लगा ली थी कचहरी में। रमा की गैर-हाजिरी में अनिल वहाँ ग्राहकों को बैठाता, उन्हें चाय-पानी पूछता। वह मुंशी था एक तरह से।
किटी पार्टी में औरतों का आना शुरू हो गया था। आते ही अनिल उन्हें ठंडा पिलाता। बहुत-सी औरतें यद्यपि अनिल को पहली बार मिल रही थीं, परंतु रमा की तरफ से उससे परिचित थीं–‘हर बात ध्यान से सुनता है’, ‘दिल लगा कर काम करता है’, हर आए-गए को पूरी तवज्जो देता है’।
खूब सजा है आज तो। सूट भी नया डाला लगता है।एक औरत ने कहा।
हाँ, बीबी जी ने नया कपड़ा लाकर दिया। हमने पहली बार नए कपड़े पहने हैं बीबी जी के घर आकर।
इसी तरह किसी और ने कहा, खूब जंच रहा है आज तो, हीरो बन गया है, पंजाब में आकर।
अनिल ने पूरी बात सुनकर कहा, मैं न रोज नहाता हूँ। साबुन से पहली बार नहाया।और फिर जरा शरमा कर बोला, हमारा रंग भी गोरा हो गया है।
साथ बैठी औरत को जैसे मजाक सूझा, अच्छा! फिर तो तू जब घर जाएगा, तेरी माँ ने अगर तुझे पहचाना ही नहीं तो?
अच्छा ही है। नहीं पहचानेगी तो, मैं यहाँ ही रह जाऊँगा. बीबी जी के पास।अनिल ने एकदम जवाब दिया।
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