सतिपाल खुल्लर
उसका दोस्त गुजर गया था। वैसे तो उसने ज़िंदगी
में कइयों से दोस्ती की थी, पर अधिकतर से वह दोस्ती का निर्वाह नहीं कर पाया था।
मुँह पर सच्ची बात कह देने की आदत ने उसे दोस्तों से दूर कर दिया था। उससे तो कई
रिश्तेदार भी मुँह मोड़ गए थे। एक यही दोस्त रह गया था। आज इसकी मौत की खबर सुन कर
तो उसके पाँवों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई थी।
वह बहुत ही भरे मन से पत्नी सहित दोस्त के घर
पहुँचा था। पत्नी औरतों में बैठी मृतक दोस्त की पत्नी के गले लग कर रो रही थी। वह
मर्दों में जा बैठा था। वहाँ दोस्त के ताऊ-चाचे, उनके बेटे व बाहर से आए लोग बैठे
थे। वह सिर झुकाए बैठा आँसू बहाता रहा, किसके गले लगकर रोता? वहाँ बैठे लोगों की
बातें सुन-सुनकर वह हैरान होता रहा। सब कारोबार की बातें कर रहे थे।
पिछले साल की बात है, इस दोस्त के पिता जी का
देहांत हो गया था। तब वह दोस्त के गले लग कर बहुत देर तक रोया था। वहाँ बैठे लोगों
खुसुर-फुसुर शुरू हो गई थी। यह कौन है? इसे हमसे ज्यादा दुख है क्या! किसी ने अपना
दुख दिखाने के लिए बहुत ऊँची आवाज भी निकाली थी। दोस्त की माँ तो बहुत पहले ही मर
चुकी थी।
दाह-संस्कार के पश्चात वह पत्नी के साथ घर लौट
आया। मन भरा हुआ था। शाम को पत्नी जब भोजन के लिए पूछने आई तो मृतक दोस्त की बातें
छिड़ गईं। मन को फोड़ा फिस पड़ा। उसने पत्नी के गले लग कर ऊँची चीख मारी, “हाय दोस्त! तू मुझे अकेला
छोड़ गया…!”
पत्नी भी सिसकने लगी। कितनी ही देर तक वे
एक-दूसरे के गले लग कर रोते रहे।
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