Monday, 3 November 2014

पहला कदम



हरभजन सिंह खेमकरनी

धूम-धाम से हुई शादी के बाद तीन माह कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला। पति जसविंदर को वापस कैनेडा जाने के लिए तैयारी करते देख सिमरनजोत का मन खिल उठा कि बस अब कुछ ही दिनों में कैनेडा की धरती उसके पाँव तले होगी। लेकिन परिवार की ओर से उसे तैयारी करने के लिए कोई संकेत नहीं मिला था। शादी से पहले तय तो यही हुआ था के वे दोनों कैनेडा एक साथ जायेंगे। परंतु कैनेडा जाने के लिए आवश्यक कागज-पत्रों के बारे में उसे तो कुछ नहीं बताया जा रहा। उसे लगा, कहीं जाने का समय नजदीक आने पर उसे कागजों के न आने के बहाने का सामना न करना पड़े। शंका निवृत्ति हेतु उसने पति से बात करना ठीक समझा।
लगता है आप कैनेडा जाने की तैयारी कर रहे हो, और मैं?”
इस बार तो तेरा साथ जाना मुश्किल है, कागज़ पूरे नहीं हो रहे।
कागजों का क्या है, आजकल तो आन-लाइन सारा काम हो जाता है। टिकट के पैसे भी  डैडी ने पहले ही दे दे दिए हैं।
“पैसे देकर उन्होने मुझ पर कोई एहसान नहीं किया। लड़कियों को कैनेडा भेजने के लिए लोग लाखों रुपये देनें को तैयार बैठे हैं। हमने तो सिर्फ किराया ही माँगा।”
“तब यह बात भी तय हुई थी कि आप मुझे कैनेडा साथ लेकर जाओगे।”
“अगर मैं न लेकर जाऊँ तो अब तुम क्या कर लोगी? शब्दों से हँकार झलक रहा था।
सिमरनजोत एक बार तो काँप उठी। उसने समाचार-पत्रों में विदेशी लड़कों द्वारा शादी पश्चात इधर की लड़कियों को विधवा जैसा जीवन व्यतीत करने के लिए छोड़ जाने संबंधी कई घटनाओं के बारे में पढा था। उसे लगा कि उसके साथ भी ऐसा ही कुछ घटने वाला है। उसने मन ही मन फैसला किया और बोली, “करना क्या है, फैसला आप पर छोड़ती हूँ, या तो मुझे साथ ले जाने का प्रबंध कर लो, नहीं तो तलाक…”
सिमरोनजोत के चेहरे पर दृढ़ता के भाव देख जसविंदर को पाँव तले की जमीन खिसकती हुई लगी।
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