मंगत कुलजिंद
कैनेडा से परिवार सहित छुट्टियाँ व्यतीत करने अपने गाँव आए कुलदीप ने शहर से बाहर जी.टी. रोड पर कार रोक ली।
“अब क्या हो गया, क्यों रोक ली यहाँ” उसकी माँ प्रसिन्नी ने हल्के-से क्रोध के साथ बहू से पूछा।
“ममा, वे सामने स्टोर से वाइन लेने गए हैं, घर पर बिल्कुल ख़तम थी׆।”
शराब के ठेके के आगे एक बड़ी-सी पेंटिंग लगी थी। जिसमें दो लगभग नग्न लड़कियाँ एक नौजवान को शराब का पैग दे रही थीं। उसे देखते हुए कुलदीप की नौ वर्षीय बेटी किस्स ने अपनी माँ को झँझोड़ते हुए कहा, “वाह! मौम, क्या ब्यूटीफुल पेंटिंग है सामने! देखो न दो ब्यूटीफुल लेडीज और एक हैंडसम ब्वाय, जंगल में इन्जवाए कर रहे हैं…।”
“यैस बेटा! देखा पंजाब में भी अब ऐसी पेंटिंग्ज मिलती हैं।”
“पर मौम, इस में एक प्राबलम है, वे जो पेड़ की डालियाँ इनकी बॉडीज पर पड़ रही हैं न, उन से ये भद्दी लग रही हैं। पेड़ों को ऐसा नहीं करना चाहिए था।”
किस्स की मम्मी कुछ बोलती, इससे पहले ही प्रसिन्नी की नज़र उस पेंटिंग पर पड़ गई। मन में कुछ हीनता महसूस करते हुए उस ने कहा, “नहीं बेटा, उन वृक्षों ने कुछ गलत नहीं किया। वे तो औरत के जिस्म की भद्दी नुमाइश देख कर शर्म से पानी-पानी हो झुक गए हैं।”
किस्स को कुछ समझ लगी या नहीं, पर उसकी माँ ने मन में दुहराया, ‘ये बुढ़िया ज़माने के अनुसार नहीं बदलेगी।”
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1 comment:
zmana bhale hi kitna badal jaye ....kuchh mulya kuchh sharm to hmesha baki rahegi....
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