Sunday, 25 September 2011

बलि


जगरूप सिंह किवी

आज भंडारे का दिन था। भौर होते ही लोग तालाब के पास एकत्र होने लगे। हर वर्ष भंडारे वाले दिन तालाब से एक लड़की की लाश मिलती है। उस लाश को बाहर निकाल कर डेरे वाले स्वामी जी के सामने रखा जाता है। लड़की के माँ-बाप को एक छोटे आसन पर स्वामी जी के पास बिठाया जाता है। स्वामी जी अपने हाथों से उन्हें प्रसाद देते हैं। लड़की से सीधा स्वर्ग जाने की बात भी करते हैं।
केवल स्वामी जी के शागिर्द ही जानते हैं कि भंडारे से पहली रात स्वामी जी संगत में से एक लड़की पसंद करते हैं। शागिर्द उसे समझा-बुझा कर स्वामी जी के पास ले जाते हैं। आधी रात के बाद स्वामी जी की हवस की शिकार लड़की का गला दबाकर तालाब में फेंक दिया जाता है।
पर ये क्या! लोगों ने दाँतों तले उँगली दबा ली। आज जिस लड़की की लाश तालाब में तैर रही थी, वह स्वामी जी की छोटी बहन थी। लोग लाश को स्वामी जी के पास ले आए। परंतु आज छोटे आसन पर किसी को नहीं बिठाया गया।
स्वामी जी के खास शागिर्द परेशान थे। स्वामी जी की बहन की लाश बारे उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। पर आसन पर बिराजमान स्वामी जी के चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान थी। आलोकिक व द्वंद्वकथा के प्रसंग को जारी रखने तथा अपनी गद्दी को कायम रखने के लिए उन्होंने अपनी बहन की बलि दे दी थी।
                              -0-