अव्वल सरहदी
उसकी पहले दो लड़कियाँ थीं। उसका पाँव फिर से भारी था। सभी ने टैस्ट करवाने के लिए कहा। पहले तो वह न मानी, पर जब टैस्ट करवाया तो फिर लड़की। अब वह दुविधा में थी कि क्या करे और क्या न करे।
बुजुर्ग सफाई के हक में नहीं थे। कह रहे थे कि बच्चा चार माह का हो गया है, सफाई न करवाएँ। परंतु बाकी सब हक में थे, यहाँ तक कि उसका पति भी यही चाहता था।
एक प्राइवेट अस्पताल में उसे दाखिल करवाया गया। बहुत बढ़िया कमरे और फर्नीचर। डॉक्टर ने इंजैक्शन दे दिया और दो दिन अस्पताल में रहने को कहा।
सायं को वह एकाएक निढाल-सी हो गई। पसीना आने लगा, घबराहट बढ़ गई। डॉक्टर को बुलाया गया। उसने सब कुछ ठीक बताया और घबराहट दूर करने के लिए दवा दे दी।
“मामूली घबराहट है, ठीक हो जाएगी।” कहकर डॉक्टर चला गया।
लेकिन उसकी बेचैनी दूर नहीं हुई। पसीना लगातार आ रहा था। घबराहट भी बनी हुई थी। घरवाले और परेशान हो गए।
पहले तो वह चुप थी, पर कुछ समय बाद सामने दीवार पर लगी एक बच्चे की तस्वीर की ओर इशारा करके चीखते हुए बोली, “इस तस्वीर को हटा दो, इसे मेरे सामने से हटा दो!”
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मार्मिक ...
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