हरप्रीत सिंह राणा
दिन भर दफ्तरी फाइलों में मगज खपा, छुट्टी के बाद वह थका-हारा सुस्त रफ्तार से साइकिल चलाता हुआ घर जा रहा था। एक मोड़ पर उसका साइकिल दूसरी ओर से आ रहे दो लाल फीतियों वाले शराबी के साइकिल से जा टकराया। दोनों गिरते-गिरते बचे। गलती पुलिसवाले की थी। वह शराब के नशे में गुट्ट, गलत दिशा में चल रहा था। पुलिसवाला उसकी गाल पर एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दहाड़ा, “साले, अँधा है क्या? देख कर साइकिल नहीं चला सकता?”
वह गुस्से में काँपने लगा, पर शराबी पुलिसवाले के आगे कुछ भी बोलने की हिम्मत न कर सका। वह सब्र का घूँट पी कर रह गया। एक दफ्तरी बाबू हवलदार के सामने क्या बोलता। हवलदार की गालियाँ सुनता वह चुपचाप अपने राह चल दिया। लेकिन इस असहनीय अपमान से उसकी मानसिक दशा बिगड़ गई थी। वह हाँफता हुआ तेजी से सइकिल दौड़ाता रहा था। मन ही मन वह उस पुलिसवाले की माँ-बहन एक करता हुआ मन को शांति दे रहा था।
अचानक उसका साइकिल पैदल जा रहे एक प्रवासी मज़दूर में जा टकराया। मज़दूर दिन भर की मेहनत के बाद रात के भोजन के लिए राशन का थैला उठाए जा रहा था। मज़दूर गिर गया और उसके थैले का राशन सड़क पर बिखर गया। उसने गिर गए मज़दूर की पसलियों पर चार-पाँच ठोकरें लगा दीं। मज़दूर दर्द से चीख उठा।
“कुत्ते, हरामजादे…तेरी बहनकी…साले, एक तरफ होकर नहीं चल सकता?” उसने गालियों की बौछार कर दी। फिर एक-दो लातें और जमा साइकिल उठा बड़बड़ाता हुआ घर की ओर चल दिया। अब उसकी आँखों में जीत की चमक थी और मन हल्का फूल-सा हो गया था।
मज़दूर दर्द से कुरलाता हुआ उठा। उसकी आँखों से परल-परल आँसू बह रहे थे। तभी वहाँ से गुजरने वाला एक आवारा कुत्ता सड़क पर बिखरे आटे को सूँघने लगा। मज़दूर ने फुर्ती से सड़क पर गिरी अपनी जूती उठाई और ज़ोर से कुत्ते के दे मारी। कुत्ता ‘चऊँ-चऊँ’ करता हुआ भाग गया। मज़दूर ने कुत्ते को एक भद्दी-सी गाली दी और बिखरा सामान समेटता हुए अपने राह चल दिया।
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1 comment:
हर छॊटी मच्छी को बडी मच्छली खा रही है। बढिया प्रस्तुती।
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