दौरे से वापस आया तो बड़े भाई साहब का फोन मिला, “तीन दिन हो गए नीरजा आई हुई है।”
आठ महीने पहले ही नीरजा की शादी हुई थी। नीरजा भाई साहब की इकलौती बेटी है। नाम के अनुरूप ही सुंदर और समझदार। पता नहीं वह ससुराल में क्यों खुश नहीं थी। जब भी उससे फोन पर बात करता, वह रो पड़ती।
भाई साहब के घर गया तो नीरजा मेरे गले लग कर रो पड़ी। वह काफी कमज़ोर लग रही थी। ‘मैने वापस नहीं जाना।’ एक ही रट लगा रखी थी उसने। मैने उसे समझाना चाहा तो बोली, “सास बात-बात पर ताने देती रहती है। हर काम में टोकती है। मुझ से नहीं सहा जाता अब।”
मैने उसे समझाया कि एक दूसरे को समझने में वक्त लगता है, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।
“वहाँ कुछ नहीँ सुधरेगा, चाचा जी! मैं ही चाहे…” वह रो पड़ी।
उसका मन बहलाने के लिए मैं उसे बाहर लॉन में ले गया। टहलते हुए उसके साथ इधर-उधर की बातें करने लगा। तभी नीरजा का ध्यान कुछ मुरझाए हुए पौधों की ओर गया। वह बोली, “माली काका! जो पौधे आप परसों रोप कर गये थे, वे तो मुरझाए जा रहे हैं। सूख जाएँगे तो बुरे लगेंगे। इन्हें उखाड़ कर फेंक दो।”
“नहीं बिटिया, ये सूखेंगे नहीं। ये नर्सरी में पैदा हुए थे, इन्हें वहाँ से उखाड़ कर यहाँ लगाया है। नई जगह है, जड़ें जमाने में थोड़ा समय तो लगेगा।”
माली की बात सुन नीरजा किसी सोच में डूब गई। थोड़ी देर बाद ही वह ससुराल जाने की तैयारी करने लगी।
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5 comments:
bahut achhi lagi ye kahani...jo ghar ghar ki kahani h
प्रेरक लघुकथा।
दोस्तों
आपनी पोस्ट सोमवार(10-1-2011) के चर्चामंच पर देखिये ..........कल वक्त नहीं मिलेगा इसलिए आज ही बता रही हूँ ...........सोमवार को चर्चामंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराएँगे तो हार्दिक ख़ुशी होगी और हमारा हौसला भी बढेगा.
http://charchamanch.uchcharan.com
सुन्दर सीख देती हुई लघुकथा
inspirational, innocent and soft short story
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