केवल राम रोशन
बस अड्डे के एक कोने की तरफ सवारियों की भीड़ लगी रहती। कई तरफ जाने वाली बसें यहाँ रुकती थीं और साथ ही बड़े पीपल की छाँव दूर तक फैली हुई थी। इस तरफ ही एक कोने में एक मोची सुबह से शाम तक जूतों की मरम्मत करता और अपना व अपने बच्चों का पेट पालता। वह एक बात से बेहद दुखी था कि सवारियाँ उसके पिछली ओर कोने में पेशाब कर जातीं। वह सारा दिन उसकी बदबू से दुखी रहता। अगर किसी को पेशाब करने से रोकता तो वह उसके गले पड़ जाता।
आखिर उसे एक तरकीब सूझी। उसने उस जगह को साफ किया और पाँच ईंटों को सफेदी कर वहाँ एक मढ़ी-सी बना दी। रोज सुबह वह वहाँ एक चवन्नी रख देता।
अब जो कोई भी उधर जाता, पेशाब करने की बजाए एक सिक्का फेंक, माथा टेक कर वापस लौट आता।
अब मोची बदबू से छुटकारा भी पा चुका था और रोज शाम को पाँच-छः रुपये की रेजगारी भी घर ले जाता था।
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