गुरमेल मडाहड़
सवारियों से भरा ताँगा चढ़ाई चढ़ रहा था। घोड़ा पूरा जोर लगाकर ताँगा खींच रहा था। ताँगे की बम्बी से ताँगेवाला नीचे उतरा । उसने सवारियों को भार आगे करके बैठने का इशारा किया। चाबुक की मार और मालिक की हल्लाशेरी से घोड़े ने अपना बाकी का जोर भी ताँगा खींचने में लगा दिया। ताँगेवाला ताँगे के साथ-साथ चलने लगा।
“घोड़े की टाँग खराब है?” घोड़े को लंगड़ाते देख एक सवारी ने आगे झुकते हुए पूछा।
“हाँ।”
“फिर आराम करवाना था इसे।”
“डेढ़ माह के बाद आज ही जोता है।”
“सवारियाँ कम बैठा लिया कर।”
“कम कैसे बैठा लिया करूँ? आठ रुपए किलो के हिसाब से दो किलो चने। चार रुपए का दस किलो चारा। चार रुपए का दस किलो भूसा और पाँच रुपए का मसाला। उनतीस-तीस रुपए घोड़े को चराकर, दस रुपए मुझे भी घर का खर्च चलाने को चाहिएँ।”
“वह तो ठीक है, पर शास्त्रों में लिखा है कि जो व्यक्ति किसी को इस जन्म में तंग करता है, उसका बदला उसे अगले जन्म में देना पड़ता है।” सवारी बोली।
“पहले इस जन्म के बारे में सोच लें, अगले जन्म की अगले जन्म में देखी जाएगी।” कहकर ताँगेवाले ने घोड़े को चाबुक मार दिया।
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3 comments:
छा गऐ जी तुसी छा गऐ
ब्लागर और साहित्यकार तथा पत्रिका SADBHAVNA DRAPAN के सम्पादक गिरीश पंकज का साक्षात्कार/interview पढने के लिऐ यहा क्लिक करेँ-->>एक बार अवश्य पढेँ
तांगेवाला भी क्या करे.
इस ब्लॉग पर अब तक सैंतालीस कहानियां आई हैं। आज ही रजनीश परिहार जी से इस ब्लॉग का पता मिला और सारी कहानियां पढ़ गया हूं। अगली कहानी का इंतजार रहेगा।
इस बेहतरनी प्रयास के लिए दिल से साधूवाद...
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