“अरे तू बड़ा मास्टर बना फिरता है, मुझे भी कोई चार अक्षर सिखा दे।” दीपी ने अपने छोटे देवर से कहा।
“पढ़ा देता हूँ भाभी, यह कौन सी बड़ी बात है।” वह खचरी हंसी हंसता है।
“अच्छा मैं पढ़ने बैठ रही हूँ।” दीपी किताब खोल कर बैठ जाती है।
“मास्टर जी, यह क्या है?” दीपी एक अक्षर पर उंगली रख कर पूछती है।
“भाभी, तुम बहुत सुंदर हो।”
“मास्टर जी, अब मैं आपकी भाभी नहीं, विद्यार्थी हूँ।”
“अच्छा-अच्छा, भाभी सच-सच बताना रात को जब तुम बिजली…”
“मैने कहा जी, अब आप मास्टर हो और मैं…”
“तब तुम्हें मेरा ख्याल…”
वह कुछ कह ही रहा था कि दीपी का थप्पड़ उसके मुंह पर पड़ा। वह बोली, “स्कूल में भी यही करतूतें करता होगा।बड़ा मास्टर बना फिरता है! लच्छन देखो इस की मास्टरी के।”
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5 comments:
सही थप्पड़ दिया..मास्टर जी के लच्छन ठीक नहीं..:)
एक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
ऐसे "लच्छन" का यही जवाब है।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
मैने कहा जी, अब आप मास्टर हो और मैं…”
behtreen ......
ek meri taraf se bhi
सही समय पर सही कदम!oh sorry!haath...
कुंवर जी,
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