अमर गम्भीर
गाड़ी तेज रफ्तार से मंजिल की ओर बढ़ रही थी। डिब्बे में बैठी सवारियां अपनी बातों में मस्त थीं।
“मेरा दिल करता है, जंजीर खींचूं।” एक यात्री बोला।
“क्यों?”
“बस मन करता है।” उसने अपनी इच्छा प्रकट की।
और फिर सबने मिल कर फैसला किया, “इसे जंजीर खींच लेने दो। सभी मिलकर जुर्माने की रकम अदा कर देंगे।”
सभी सहमत थे, पर एक असहमत था।
“मैं क्यों दूँ पैसे! यह क्यों खींचे जंजीर…करे कोई, भरे कोई, यह कहाँ का नियम है?”
पर तब तक यात्री जंजीर खींच चुका था। जंजीर खींचते ही गाड़ी रुक गई। गार्ड उस डिब्बे में दाखिल हुआ। सभी ने मिल कर उस व्यक्ति पर दोष लगा दिया, जिसने उनकी हाँ में हाँ नहीं मिलाई थी।
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8 comments:
... बहुत खूब ... लाजवाब अभिव्यक्ति !!
आज देश और समाज में किस तरह तर्कसंगत व्यवहार का घोर अभाव है और वैचारिक खोखलापन पर अच्छी विश्लेष्णात्मक रचना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद /आशा है आप इसी तरह ब्लॉग की सार्थकता को बढ़ाने का काम आगे भी ,अपनी अच्छी सोच के साथ करते रहेंगे / ब्लॉग हम सब के सार्थक सोच और ईमानदारी भरे प्रयास से ही एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित हो सकता है और इस देश को भ्रष्ट और लूटेरों से बचा सकता है /आशा है आप अपनी ओर से इसके लिए हर संभव प्रयास जरूर करेंगे /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /
यही जमाना है..
हाँ में हाँ मिलाना है
जो न मिलाये...
उसे तो सजा पाना है!!
यही लोकतंत्र है...
प्रणव सक्सेना
amitraghat.blogspot.com
bahut achee kahaniyan pesh karte haiN, writer ko badhai.
bahut achee kahaniyan pesh karte haiN, writer ko badhai.
bahut achee kahaniyan pesh karte haiN, writer ko badhai.
ये लघुकथा पढ़ी हुई है, किसने लिखी थी याद नहीं, हो सकता है आप ही लेखक रहे हों। अगर आप ही मूल लेखक हैं तो बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें, मुझे बहुत पसंद है ये और अगर किसी और की है तो इस बात का रेफ़रेंस डालना चाहिये था।
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