Monday, 8 March 2010

चिंता

अमरजीत हांस

वह सहमी-सी हमारे पास जम्बो सर्कस में आ बैठी। चारों ओर देखते हुए वह मेरी पत्नी से बातें करने लगी। उसके सुंदर चेहरे पर उदासी झलक रही थी। दर्द भरी आवाज में वह बोली, “बहन जी, मेरा आदमी भी वहाँ सामने बैठा है।”
हम दोनों आश्चर्य से एक साथ बोले, “आप उनके साथ क्यों नहीं आईं?”
आँसू पोंछती हुई वह बोली, “उसके साथ एक और है, लाल सूट वाली। मेरा बेटा भी है उसकी गोद में।”
“आप उसे रोकती क्यों नहीं?” मेरी पत्नी ने चिंता प्रकट की।
“बहन जी नहीं मानता वह। पता नहीं कंजरी ने उसके सिर में क्या धूड़ दिया है। वह है भी हमारे गाँव की।”
हमदर्दी जतलाते हुए मेरी पत्नी ने कहा, “यह तो बहुत बुरी बात है, आप अपने माता-पिता से कहो।”
वह औरत चिंता प्रकट करते हुए बोली, “बहन जी, अकेला ही है। अगर मैंने भाइयों को बता दिया तो कहीं कुछ खाकर मर न जाए”
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2 comments:

Udan Tashtari said...

क्या कहा जाये इस समर्पण का...

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी लगी लघु कथा औरत मन इतने दुख और तसीहे सह कर भी पति के लिये अच्छा ही सोचता है। आभार इस लघु कथा के लिये।