डॉ. हरभजन सिंह
नंगे पाँव, फटे-पुराने वस्त्र व माटी से सना वह मासूम बच्चा कूड़े के ढेर में से कागज बीन रहा था। कागज बीनते-बीनते उसके हाथ एक पुरानी पुस्तक लग गई। वह वहीं बैठकर पुस्तक के पन्ने पलटने लगा। पुस्तक में छपे अक्षरों की तो उसे कुछ समझ न आई, लेकिन तस्वीरें देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। फिर उसका ध्यान नये वस्त्र पहने, सुंदर बस्ते उठाए स्कूल जाते बच्चों की ओर चला गया।
काश! मैं भी स्कूल जा पाता! खूब पढ़ता-लिखता, खेलता…! वह सोचने लगा। थोड़ी दूर पर कागज बीन रही उसकी बारह-तेरह साल की बहन सब देख रही थी। पैबंद लगे वस्त्रों में लिपटी इस मरियल-सी लड़की को अपने छोटे भाई की मासूमियत पर तरस आ गया। लड़की ने उसके पास जाकर उसके कंधे को झकझोरते हुए कहा, “उठ भाई, बापू ने देख लिया तो गुस्सा होगा।”
लड़के ने घबराकर पुस्तक बोरी में डाल ली और जल्दी-जल्दी कागज बीनने लगा।
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3 comments:
उफ्फ!! ये विडंबना...
अत्यंत मार्मिक लघुकथा
दिल को छू लिया
आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ...nice
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