अवतार सिंह बिलिंग
“दलित लड़के की लंबरदार की कालेज पढ़ती लड़की को भगा ले जाने की हिम्मत कैसे हुई?” गाँव में हाहाकार मच गई। गाँव के बड़े आदमी की इज्जत का सवाल था।
बड़ी भाग-दौड़ के पश्चात लड़की बरामद कर ली गई। तब पंचायत की बड़ी सभा की गई।
“गोली मारो साले को, चौराहे में खड़ा करके!”
“कुत्तों से पड़वा दो इस कंजर को!”
“मुँह काला करो, इस कपूत का…और जलूस निकालो इसका, गधे पर बैठा कर।”
चारों तरफ से थू-थू, छि:-छि: की आवाज़ें आ रही थीं।
“तेरी दाढ़ी क्यों न जला दी जाए, कंजर लंबड़ा?…याद नहीं तुझे?…जब खेत में गई एक विधवा माँ को तू बाँह से पकड़ कर मक्का में ले गया था।”
चार व्यक्तियों की भुजाओं में जकड़े दाँत पीसते लड़के ने लंबरदार के मुख पर थूक दिया।
-0-
6 comments:
बहुत बढिया. शिल्प प्रभावशाली
ਵਧਿਆ
bahut sundar laghu kathaa badhai
jai hind !
एक बेहतरीन लघुकथा के लिए बधाई।
रचना अच्छी लगी,बधाई.
Post a Comment