Sunday 5 July 2009

यादगार



अमृत जोशी
कुछ लोग दान देकर रसीद ले रहे थे, कुछ गोलक में रुपए-पैसे डाल रहे थे। लोग आ-जा रहे थे। ईंटों, बजरी, सीमेंट का ढ़ेर लगा था और निर्माण कार्य ज़ोर-शोर से चल रहा था।
यह वही जगह थी जहाँ पिछले दिनों दो अनजाने व्यक्तियों द्वारा अंधाधुंध फायरिंग करने से दस व्यक्ति मारे गए थे। मरने वालों में से एक ने बड़ी बहादुरी से मुकाबला करते हुए फायरिंग करने वालों में से एक को काबू कर लिया था। इसी कारण बहुत से बेकसूर लोग भागकर जान बचाने में सफल हो गए थे।
उस शहीद की याद में ‘यादगार’ बनते देख मन खुश हो रहा था। इस अच्छे काम के लिए मुझे भी योगदान देना चाहिए, सोचकर मैं आगे बढ़ा।
“फायरिंग में मारे गए शहीद की यादगार ही बनाई जा रही है न?” मैंने दान देकर आ रहे एक व्यक्ति से पूछ कर तसल्ली कर लेनी चाही।
“वो जी, आपको याद होगा, फायरिंग में एक गाय भी मारी गई थी। उस गौ माता की याद में मंदिर बना रहे हैं।”
उत्तर सुन कर मेरे पाँव वहीं ठहर गए।
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2 comments:

M VERMA said...

बहुत खूब, मार्मिक भी है
शायद समाज की यही नियति है

ओम आर्य said...

bahut hi badhiya abhiwyakati ..............sundar post