इंग्लैंड में रह रहे पंजाबी लघुकथा लेखक श्री गुरदीप दीप पुरी पिछले दिनों इस दुनियाँ को सदा के लिए अलविदा कह गए। उनका पंजाबी लघुकथा संग्रह ‘खाहिश’ पंजाबी में चर्चित रहा है। ‘पंजाबी लघुकथा’ अपनी ओर से इस दिवंगत लेखक को श्रद्धांजलि अर्पित करता है। प्रस्तुत है दिवंगत लेखक की दो लघुकथाएँ।
बोझ
“यार, जबसे यह नई कमेटी आई है न, ससुरों ने गुरु-घर में सुधार लहर ही चला दी है।” गुरुद्वारे के ग्रंथी-सिंह ने बड़े दुखी स्वर में कहा।
“वह कैसे?” दूसरे गुरुद्वारे के ग्रंथी ने हैरान होते हुए गुरुभाई से पूछा।
“देखो न, नई गोलक रख दी है। इसमें न चिमटी पड़ती है और न ही गोंद लगी तीली। अब ये छोटी-छोटी हरकतों पे उतर आए हैं। रात को अखंडपाठ की माया भी गोलक में डाल जाते हैं।”
“हूवर चला लिया कर। ऐसे दुखी मत हो।”
यह सुनते ही पहले ग्रंथी के मन से बड़ा बोझ उतर गया।
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फंड
“प्रिंसीपल साहिब! यह मेरी कहानियों की नई पुस्तक छपी है। इसकी दो प्रतियाँ स्कूल की लायब्रेरी में रख लें। कुछ खर्चा-वर्चा ही निकल जायेगा।”
“रख तो लेते यार, पर फंड ही नहीं हैं।”
“हमने कौन सी बैंक की किश्त उतारनी है जी। हमने तो आपके साथ शाम को शुगल ही करना है, लद्धे मछली वाले के बैठ के। साथ में घूँट-घूँट दारू…।” उसने हंसते हुए कहा।
“दे जा फिर पाँच प्रतियाँ। हिसाब लद्धे के यहाँ बैठ कर कर लेंगे।” प्रिंसीपल ने रुमाल से मुँह पोंछते हुए कहा।
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1 comment:
ਬਹੁਤ ਸੁਨ੍ਦਰ!!
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