Sunday, 22 August 2010

बेवफा

केवल सिंह परवाना


आज उन्होंने फिर मिलने का इकरार किया था। शायद यह उनका आखिरी इकरार था।

इस इकरार से पहले, दो बार वायदा करके वे मिल नहीं सके थे। दो बार प्रेमिका बेवफा साबित हो चुकी थी। शायद उसे घर से निकलने का कोई बहाना न मिला हो। शायद घर वालों ने उसकी नज़रों में दीवानगी छलकती देख ली हो। पर इस बार प्रेमी की शर्त बड़ी सख्त थी। उसने पत्र में लिखा था‘मेरी जान…तुम दो बार वायदा तोड़ चुकी हो। इस बार मुआफ नहीं किया जायेगा। अगर तुम शाम के ठीक चार बजे रेलवे लाइन के नज़दीक हनुमान मंदिर में नहीं पहुँची तो मैं साढ़े चार बजे यहाँ से गुज़रने वाली गाड़ी के नीचे सिर दे दूँगा।’

पर बड़ी बदनसीबी। काश! वह समय पर वहाँ पहुँच सकती। एक दिन पहले ही उसने बहाने ढूँढ़ना शुरु कर दिया।‘सहेली से मिलने जाना है’, ‘मंदिर जाना है’, ‘डॉक्टर से दवा लेने जाना है’, पर उसकी जालिम माँ ने एक न सुनी।

ठीक साढ़े चार बजे गाड़ी चीखती हुई गुजर गई। पर हनुमान मंदिर के पास कोई दुर्घटना न हुई। प्रेमी का मन नफरत से भर गया। उसने सोचा‘मैं एक बेवफा लड़की के लिए जान क्यों दूँ? अगर वह मुझे प्यार करती होती तो अवश्य आती। मैं नहीं मरूँगा। मैं किसी और वफादार…।’

नफरत से भरा मन लेकर, वह मंदिर से बाहर आ गया। अपने घर लौटते उसके मन में आया, ‘क्यों न उस बेवफा के घर के आगे से गुजरा जाए। अगर वह फिरती हुई दिखे तो उसे गाली देकर ही जाए।’

जब वह उसके घर के आगे से गुजरा तो भीतर से चीखने-चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। घर के भीतर जा रही एक पड़ोसन ने पूछने पर बताया, इनकी नौजवान लड़की ने खुदकुशी कर ली है।

उसके पाँव वहीं पत्थर हो गए।

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