Tuesday, 30 March 2010

एहसास


गुरमेल मडाहड़


शादी से पहिले वे जब भी एक-दूसरे से मिलते, तो जसजीत वीना के जूड़े में बड़े प्यार से फूल लगाता। वह उसे काफी देर तक सहलाती रहती और कहती, जसजीत, मुझे एक बेटा दे दे, बिलकुल तुम जैसी अक्ल-शक्ल हो।

फिक्र न कर, तेरी यह इच्छा भी जल्दी ही पूरी हो जाएगी।जसजीत कहता।

फिर उनकी शादी हो गई। शादी के बाद उसे कई बार माँ बनने की आशा हुई, पर बार-बार वह बीमार पड़ती रही। इस बीच जसजीत फूल-वूल लगाना सब भूल गया। उसे हर समय वीना की चिंता खाए रहती थी। कई डॉक्टर बदलने के बाद आखिर वे सफल हो ही गए। उनके घर बेटे ने जन्म लिया। जसजीत बहुत खुश था। उसने बच्चे को खूब प्यार किया, वीना को मुबारकबाद दी और उसके जूड़े में फूल लगाने लगा।

वीना बोली, जसजीत, अब मेरे यह फूल न लगाया कर।

क्यो? अब मेरा फूल लगाना तुझे अच्छा नहीं लगता?

नहीं, यह बात नहीं।

फिर?

फूल तोड़ने के लिए नहीं, देखने और प्यार करने के लिए होते हैं।

अच्छा!

हाँ…कोई फूल कितनी मुश्किलों के बाद खिलता है, यह एक माँ ही जान सकती है, कोई और नहीं।

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Thursday, 25 March 2010

मन्नत



अवतार सिंह कंवर

सीबो, तूने मुझे बताया ही नहीं कि तेरी माँ मेले में जाएगी!”
चाची, बस अचानक ही तैयारी हो गई। मैंने तो कहा था कि क्या लेना है मेले में, पर माँ नहीं मानी। बोलीपाँचपीरों की समाधि पर माथा टेक आऊँगी। मन्नत की थी तेरे भाई की, जब उसे मियादी बुखार हुआ था।
अच्छा!”
जब मैंने कहामाँ, भैया को तो शहर के डॉक्टर से आराम आया था, तो कहने लगीतेरा सिर आया था! बीमारी नेमोड़ तो उसी दिन लिया, जब पीरों की मन्नत मानी।
सीबो, बात तो तेरी माँ की ठीक है, और मन्नत का भार भी उठाकर नहीं रखना चाहिए। जब जगीरो की बहू केबच्चा होने वाला था, उसने मन्नत मानी, लेकिन पूरा करना भूल गई। अढ़ाई महीने का होकर, लड़का मर गया।फिर रोए, मैंने तो पाँच पीरों की कड़ाही करनी थी।
चाची, भला हुआ क्या था लड़के को?”
चाची गला साफ करते हुए बोली, “क्या बताऊँ बेटी, सब कर्मों का खेल है! बुखार चढ़ा और ले डूबा लड़के को।
इलाज नहीं करवाया उन्होंने?”
बेटी, अपनी ओर से तो कौन कसर छोड़ता है। बहुत भागदौड़ की बेचारों ने। अपने नागा साधु के पास गएमंत्रफुंकवाया, भस्म भी लगाई। और जहाँ किसी भी सयाने का पता चला, वहीं गए। लेकिन कहीं से भी आराम नहींआया।
उसे किसी डॉक्टर के पास लेकर गए चाची?”
तू तो पढ़-लिखकर भी पागल ही रही। लड़के को तो छाया थी। डॉक्टर उसमें क्या करता! कोप तो सारा मनौती काथा।
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Monday, 8 March 2010

चिंता

अमरजीत हांस

वह सहमी-सी हमारे पास जम्बो सर्कस में आ बैठी। चारों ओर देखते हुए वह मेरी पत्नी से बातें करने लगी। उसके सुंदर चेहरे पर उदासी झलक रही थी। दर्द भरी आवाज में वह बोली, “बहन जी, मेरा आदमी भी वहाँ सामने बैठा है।”
हम दोनों आश्चर्य से एक साथ बोले, “आप उनके साथ क्यों नहीं आईं?”
आँसू पोंछती हुई वह बोली, “उसके साथ एक और है, लाल सूट वाली। मेरा बेटा भी है उसकी गोद में।”
“आप उसे रोकती क्यों नहीं?” मेरी पत्नी ने चिंता प्रकट की।
“बहन जी नहीं मानता वह। पता नहीं कंजरी ने उसके सिर में क्या धूड़ दिया है। वह है भी हमारे गाँव की।”
हमदर्दी जतलाते हुए मेरी पत्नी ने कहा, “यह तो बहुत बुरी बात है, आप अपने माता-पिता से कहो।”
वह औरत चिंता प्रकट करते हुए बोली, “बहन जी, अकेला ही है। अगर मैंने भाइयों को बता दिया तो कहीं कुछ खाकर मर न जाए”
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