
गुरमेल मडाहड़
शादी से पहिले वे जब भी एक-दूसरे से मिलते, तो जसजीत वीना के जूड़े में बड़े प्यार से फूल लगाता। वह उसे काफी देर तक सहलाती रहती और कहती, “जसजीत, मुझे एक बेटा दे दे, बिलकुल तुम जैसी अक्ल-शक्ल हो।”
“फिक्र न कर, तेरी यह इच्छा भी जल्दी ही पूरी हो जाएगी।” जसजीत कहता।
फिर उनकी शादी हो गई। शादी के बाद उसे कई बार माँ बनने की आशा हुई, पर बार-बार वह बीमार पड़ती रही। इस बीच जसजीत फूल-वूल लगाना सब भूल गया। उसे हर समय वीना की चिंता खाए रहती थी। कई डॉक्टर बदलने के बाद आखिर वे सफल हो ही गए। उनके घर बेटे ने जन्म लिया। जसजीत बहुत खुश था। उसने बच्चे को खूब प्यार किया, वीना को मुबारकबाद दी और उसके जूड़े में फूल लगाने लगा।
वीना बोली, “जसजीत, अब मेरे यह फूल न लगाया कर।”
“क्यो? अब मेरा फूल लगाना तुझे अच्छा नहीं लगता?”
“नहीं, यह बात नहीं।”
“फिर?”
“फूल तोड़ने के लिए नहीं, देखने और प्यार करने के लिए होते हैं।”
“अच्छा!”
“हाँ…कोई फूल कितनी मुश्किलों के बाद खिलता है, यह एक माँ ही जान सकती है, कोई और नहीं।”
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