Tuesday, 24 November 2009

नई पगडंडी



परमजीत थेड़ी

गुरमुख सिंह व उसकी पत्नी विकासशील विचारों के थे। विवाह के बारह साल बाद भी उनके कोई औलाद नहीं हुई थी। उन की इच्छा थी कि परमात्मा उन्हें एक बच्चा दे दे, जो उनके बुढ़ापे का सहारा बने। वह लड़के-लड़की में कोई फर्क नहीं समझते थे।
और एक दिन उनके दरवाजे के आगे लोगों ने नीम बंधी हुई देखी। नीम बंधा देख, सभी के दिल खुशी से भर गए कि चलो बारह वर्ष बाद बेटा हो जाने से उनकी जड़ लग गई।
सायं गाँव के दस-बीस स्त्री-पुरुष मिलकर बधाई देने के लिए उनके घर गए।
“बधाई! भई गुरमुख सिंह।”
“आपको भी बधाई! रब्ब आपको भी बधाए।”
“भई, बेटा तो रब्ब सभी को दे। बेटों के बिना तो जग में नाम ही नहीं रहता।”
“पर मेरे घर तो बेटी पैदा हुई है, मेरे लिए तो यही बेटा है।”
“नीम तो खुशी प्रकट करने के लिए बाँधते हैं?”
“मुझे भी बेटी पैदा होने की बेटे से ज्यादा खुशी है। आजकल लड़के-लड़की में फर्क ही कहाँ है।”
अब गाँव वालों के चेहरे उदास हो गए। धीरे-धीरे बाहर आ रहे लोग कह रहे थे, “देख लो, बेवकूफों की कोई कमी नहीं, पैदा हुई लड़की और बाँध दिया नीम।”
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3 comments:

Udan Tashtari said...

कैसी सोच है!

निर्मला कपिला said...

bahut sundar laghu kathaa hai badhaaI

सहज साहित्य said...

लेखक ने लोगों की नकारात्मक सोच को अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है ।