Friday 21 December 2012

ज़िंदगी ज़िंदा रही



अवतार सिंह बिलिंग

“खबरदार, अगर फिर यह किस्सा-मंडली बनाई। छोड़ दो यह नाचना-गाना। भजन-बंदगी करो, मेहनत करो और नमाज पढ़ो।”
शस्त्रधारी चेतावनी देकर चले गए।
कुछ दिनों की चुप के पश्चात, सदियों पुराने उस बरगद के वृक्ष के नीचे फिर रौनक होने लगी। हर दोपहर को कोई ‘हीर’ गा रहा होता, कोई ‘जिंदगी-बिलास’। कुछ दूरी पर लड़कों की एक टोली ताश के गिर्द जुड़ बैठती।
और एक दिन वे दगड़-दगड़ करते फिर आ गए, सभी को एक ही रंग में रंगने वाले बंदूकधारी। किस्सा गा रहे गायक को गोलियों से छलनी कर वे चले गए।
मौत-सी चुप्पी छा गई उस बरगद के नीचे, जैसे ज़िंदगी ठहर गई हो।
मगर आज फिर बरगद के नीचे ‘हीर’ के बोल सुनाई दे रहे हैं और ताश के खिलाड़ियों के कहकहे भी।
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